गुरुवार, 23 अगस्त 2018

#हज

*हज में कटने वाले लाखों जानवर आते कहां से हैं और चले कहां जाते हैं?*

‘हज’ मुसलमानों की जिंदगी का एक ज़रूरी काम. इस्लाम के पांच सिद्धांतों में से एक. हज यात्रा हर मुसलमान को अपनी जिंदगी में एक बार करनी ज़रूरी है अगर वो ऐसा करने में समर्थ है तो. हज ‘काबा’ का तवाफ़ (परिक्रमा) करके होता है. जोकि सऊदी अरब के शहर मक्का में है. दुनियाभर के लाखों मुसलमान हर साल वहां पहुंचते हैं. ‘हज’ कम्पलीट करने में पांच दिन लगते हैं. जिस दौरान कई रस्में पूरी करनी होती हैं. इन्हीं में से एक होती है कुर्बानी की रस्म.
हर साल इंडिया से एक लाख मुसलमान हज करने मक्का जाते हैं.
हज तभी पूरा होता है. जब वहां मुसलमान पूरी इबादत करने के बाद किसी जानवर की कुर्बानी दे देते हैं. और ऐसा हर हाजी को करना होता है. जिन जानवरों की कुर्बानी की जाती है, उनमें बकरा, भेड़ और ऊंट शामिल होते हैं. जिस दिन ये कुर्बानी वहां होती है वो दिन ईद-उल-अज़हा यानी बकरीद होती है. साल 2016 में हाजियों की संख्या 15 लाख थी. यानी 15 लाख जानवर काटे गए.
सऊदी अरब के हज और उमरा मामलों के निदेशक अब्देलमजीद मोहम्मद अल-अफगानी ने मीडिया को बताया है कि इस साल 20 लाख हाजियों के यहां पहुंचने की उम्मीद है. अगर ऐसा होता है तो फिर 20 लाख जानवरों की कुर्बानी होगी.
20 लाख जानवर. बहुत बड़ा आंकड़ा होता है. अगर इतने जानवर कटेंगे तो उनका मीट कितना होगा? सवाल मन में आता है कि इतने जानवर कटने के बाद कहां चले जाते हैं. क्या होता है इतने मीट का? और जहां कटते हैं वहां तो खून ही खून नज़र आता होगा?
शरीयत के मुताबिक जिस जानवर की कुर्बानी की जाती है उसके तीन हिस्सों में दो हिस्से मीट गरीबों में बांटना होता है. और एक हिस्सा कुर्बानी करने वाला खुद खा सकते हैं. लेकिन जो हज करने गया है न वो एक हिस्सा मीट खुद खा सकता है और न ही वहां मौजूद गरीब लोग इतना ढेर सारा मीट एक साथ कटने पर खा सकते हैं.
ऐसे में जब तक कोई ख़ास व्यवस्था नही थी तो बहुत सारा मीट पड़ा रह जाता था. दशकों पहले इन जानवरों को जमीन में दफ़न कर दिया जाता था. क्योंकि ज्यादा वक़्त तक उसको गर्मी की वजह से रखा भी नहीं जा सकता था. हज के दौरान वहां तापमान करीब 40 से भी ऊपर होता है. लेकिन अब इस मीट को ठिकाने लगाने के इंतजाम कर लिए गए हैं. साथ ही वो तरीके भी जिससे वहां गंदगी न फैले. ख़ून ही खून न दिखाई दे. सऊदी अरब सरकार कुर्बानी के मीट को उन देशों में भेज देती है, जहां पर गरीब मुस्लिम रहते हैं. साल 2013 में सऊदी अरब ने जो मीट बाहर भेजा, उनमें सबसे ज्यादा हिस्सा सीरिया को भेजा गया. कुर्बानी के बाद 9 लाख 93 हज़ार जानवर साल 2012 में 24 देशों में भेजे गए थे. साल 2013 में 28 देशों में मीट भेजा गया. इन देशों में सोमालिया. इंडोनेशिया, सीरिया, जैसे देश शामिल होते हैं. ‘यूटिलाइजेशन ऑफ़ हज मीट’ प्रोजेक्ट सऊदी सरकार ने 36 साल पहले लॉन्च किया था. जिसके तहत इस मीट को बांटने का काम किया जाता है.
इस तरह होती है अब कुर्बानी
सऊदी अरब में अब कुर्बानी करवाने के लिए इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक है. जहां से मुसलमान कुर्बानी का कूपन लेकर कुर्बानी करा सकते हैं. या फिर वो खुद भी वहीं से जानवर खरीदकर कुर्बानी करा सकते हैं. मक्का के पास ही एक बूचड़खाना है जो पोस्ट ऑफिस के ज़रिए हज पर आने वाले मुसलमानों के लिए कुर्बानी का इंतजाम करता है. ये इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक से जुड़ा है. बस यहां मुसलमानों को अपने नाम से कुर्बानी के पैसे जमा कराने होते हैं. ये पैसे जानवर के हिसाब से जमा कराने होते हैं. जैसे ऊंट की कुर्बानी देनी है या फिर बकरे-भेड़ की. इनकी कीमत तय होती है. यहां पैसे देकर हाजियों को कुर्बानी के लिए परेशान होने की ज़रूरत नहीं. क्योंकि सऊदी सरकार खुद ही कुर्बानी का इंतजाम करा देती है. अलग अलग बने स्लॉटर हाउस में कुर्बानी करा दी जाती है. जब कुर्बानी हो जाती है तो एक टेक्स्ट मैसेज से उस हाजी को खबर दे दी जाती है कि आपके नाम की कुर्बानी हो गई है. इससे गंदगी भी नहीं होती और व्यवस्था भी बनी रहती है.
कहां से आते हैं इतने जानवर?
लाखों की तादाद में कटने वाले जानवर आखिर मक्का में आते कहां से होंगे, जो हर साल काट दिए जाते हैं. सऊदी अरब में ये जानवर इम्पोर्ट किए जाते हैं. सबसे ज्यादा बकरे ईस्ट अफ्रीका के सोमालीलैंड से आते हैं. इनकी तादाद करीब एक मिलियन होती है. शिप पर लादकर जानवर सऊदी अरब पहुंचाए जाते हैं. यहां ज्यादतर लोग पशुपालन में लगे हैं. सोमालीलैंड का अब सूडान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से कम्पटीशन है. हालांकि ये जानवर उरुग्वे, पाकिस्तान, तुर्की और सोमालिया से भी सऊदी अरब पहुंचते हैं.

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